छत्तीसगढ़ !हमर मितान-सनातन संस्कृति में दान का खास महत्व है, तीनों लोकों का दान करने वाले राजा बलि, अपने शरीर का कवच कुंडल दान देने वाले दानवीर कर्ण हो अथवा अपने शीश का दान करने वाले बर्बरीक हो। हर युग में दान की महिमा गाई जाती है। छत्तीसगढ़ में भी साल में एक बार दान का पर्व छेरछेरा उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस साल छेरछेरा पर्व कल 17 जनवरी को मनाया जाएगा। गांव-गांव में दान देने की परंपरा का पालन किया जाएगा।पंडितो के अनुसार पौष पूर्णिमा को दान का पर्व छेरछेरा के रूप में मनाया जाता है। किसान अपनी फसल में से एक हिस्सा अपने पालन पोषण के लिए रखता है। छेरछेरा पर्व पर यदि कोई मांगने आ जाए तो उसे खाली हाथ नहीं लौटाया जाता। किसान अपने कोठार में से कुछ न कुछ अनाज मांगने वाले को देकर ही हंसी-खुशी विदा करता है। ऐसा माना जाता है कि दान देने से परिवार में अनाज की कमी नहीं होती।
छेरी के छेरा छेरछेरा !
गांव गांव में बच्चे, महिलाएं किसी भी घर के सामने जाकर ‘छेरी के छेरा छेरछेरा…माई कोठी के धान ला हेरहेरा…’ की आवाज लगाते हैं। उस परिवार के लोग धान, चावल, गेहूं आदि अनाज अवश्य प्रदान करते हैं।