रवि सेन दुर्ग की रिपोर्ट..✒️✒️ दुर्ग ! हमर मितान - भारत की प्रथम महिला शिक्षिका श्रीमती सावित्रीबाई फुले जी की 125 पुण्यतिथि को शासकीय प्राथमिक शाला क्रमांक 1 व क्रमांक 2 एवं पूर्व माध्यमिक शाला ढौर में भी सामूहिक रूप से आयोजित किया गया।पुण्यतिथि को प्रेरणात्मक तरीके से मनाकर बालिका शिक्षा हेतु उनके द्वारा बालिका शिक्षा हेतु ब्रिटिश काल में रूढ़िवादी सोच को बदलने हेतु किये गये अभूतपूर्व कार्यों को याद कर किया गया।साथ ही उनकी जीवनी के प्रमुख प्रेरक प्रसंगों की कहानियां अभिनय व नाटक के द्वारा रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया।इस अवसर पर उन्हें 2 मिनिट की मौन श्रद्धांजलि भी दी गई।एवं उनकी जीवनी के प्रेरणात्मक घटनाओं को अभिनय द्वारा प्रस्तुत किया गया।इस अवसर पर सभी छात्रों को देशप्रेम की शपथ भी दिलाई गयी । कार्यक्रम की शुरुआत शाला के बाल केबिनेट के प्रधाननमंत्री गायत्री मांझी और उपप्रधानमंत्री जय बंजारे द्वारा भारत की प्रथम महिला शिक्षिका श्रीमती सावित्रीबाई फुले जी के तैल्य चित्र पर तिलक लगाकर की गयी। कार्यक्रम में बच्चों को प्रथम महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले के धैर्य,साहस,पराक्रम और उनकी कुशाग्र बुद्धि द्वारा बालिका शिक्षा से बालिकाओं को जोड़ने हेतु उनके अदम्य साहस के किस्से सुनाये गये।बच्चों को यह बताया गया कि सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था।उनका विवाह 1840 में ज्योतिराव फुले से हुआ था।वे भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।वे जब स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग उनपर पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 171 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था तब ऐसा होता था।वे जब कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। छात्रों को यह भी जानकारी दी गई कि भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए।1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।इसके पूर्व 3 जनवरी 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। वे उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया।10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीजों की सेवा करती थीं। एक प्लेग से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी प्लेग हो गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।इस कार्यक्रम में ग्राम ढौर की सरपंच श्रीमती कुसुम बघेल व गणमान्य नागरिक अंजोर दास बघेल एवं ढौर के संकुल समन्यवक श्री ओम कुमार खुटियारे, शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला ढौर के प्रधानपाठक तरुण भीमगड़े शासकीय प्राथमिक शाला ढौर क्रमांक 1 एवं क्रमांक 2 के प्रधानपाठक अश्वनी देवांगन,अनिल थारवानी एवं शिक्षक दीप्ती मेश्राम, सुनीति माहेश्वरी, सुनीता साहू,चैलेन्द्र साहू, रिखी राम पारकर,यामिनी पाठक,अमृता सिन्हा,मंजू गुप्ता, प्रमिला भतपहरी,रविंदर कौर,ए मधुलिका,पूजा द्विवेदी,अंजू त्रिपाठी,मीरा यादव, मीरा आडिल,मनीष गेन्ड्रे उपस्थित थे। |
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