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संडे मेघा स्टोरी रविवार की कहानी आज शनिवार 28 सितंबर 2024 को पढ़िए अमर शहीद कामरेड शंकर गुहा नियोगी की कहानी अगर वे होते तो दल्ली राजहरा नहीं उजड़ता !
छत्तीसगढ़!हमर मितान- अमर शहीद कामरेड शंकर गुहा नियोगी के 32 वा शहीद दिवस 28 सितम्बर 2024 के स्मृति में लेख।यह लेख बार-बार मन को द्रवित करता है शंकर नियोगी जी के अमर शहीद स्थल पर लिखी यह बातें।
लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का
बाकी यही निशा होगा
कभी वह दिन भी आएगी
जब अपना राज देखेंगे
तब अपनी जमीं होगी
और अपना आसमान होगा !
अमर शहीद शंकर गुहा नियोगी जी का नाम छत्तीसगढ़ के मजदूर आंदोलन के इतिहास में अमर जो गया है l मजदूरों के द्वारा उन्हें भगवान के समकक्ष मानकर आज भी पूजा जाता है l नियोगी जी ने मजदूरों की दशा सुधारने के लिए कई आंदोलन किये l उनका उद्देश्य था जल जंगल और जमीन पर यहां के रहने वाले मूल निवासियों का ही अधिकार है तथा उनके दोहन में इनको भी हिस्सा मिलना चाहिए।
मजदूर के साथ-साथ किसानों के हक के लिए भी लड़ाई लड़ना उनके आंदोलन का हिस्सा था। नियोगी जी एक समाज सुधारक जी थे। उन्होंने समाज में हो रही बुराई जैसे की शराब और सिनेमा से मजदूरों को दूर करने के लिए कई प्रयत्न किये। ताकि इनसे बचे पैसों का मजदूर अपने परिवारों पर खर्च करे और बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर अच्छे पद पर नौकरी कर सके।नियोगी जी ने मजदूरों के बचत के लिए बैंक में खाता भी खुलवाएं ताकि थोड़ी-थोड़ी बचत कर एक बड़ी पूंजी जमा कर सके।
नियोगी जी मजदूर नेता के साथ-साथ अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने मजदूर की दशा सुधारने मजदूर आंदोलन संबंधित विभिन्न प्रकार के पुस्तक भी लिखे हैं , जो आज भी छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ द्वारा संचालित शहीद अस्पताल के लाइब्रेरी में पढ़ा जा सकता है।उनका जीवन पारदर्शी था। नियोगी जी सीधे सादे और सरल व्यक्तित्व के धनी थे । वह हमेशा मजदूरों के बीच प्रिय रहे आज के वर्तमान युग में श्रमिक नेता करोड़ो का बिल्डिंग खड़ा कर रहा है ।उसके विपरीत वह एक झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे।उनका जीवन मजदूरों को समर्पित था वे हर कीमत पर मजदूरों की हक और अधिकार की लड़ाई में मजदूरों की जीत चाहते थे।वे निस्वार्थ भाव से मजदूरों की सेवा करते थे इसलिए उनका एक-एक कदम आदर्श से भरा था।वह जो कहते थे वही करते थे।
आज इस आलेख के बीच में यह कहना बहुत ही लाजमी है की बड़े बुजुर्ग कहते थे कि यदि परिवार में किसी युवा की मृत्यु हो जाती है तो उनके द्वारा जरूरत के समय में या कहा जाता है कि आज आमुख रहता तो मेरा यह स्थिति नहीं रहता। यही बात आज राजहरा के पुराने मजदूर कहते हैं कि यदि आज नियोगी जी इस दुनिया में रहते तो राजहरा नहीं उजड़ता। कारण यह है कि नियोगी जी की प्रबंधन क्षमता बहुत ही प्रबल थी । वह दूर की सोचते थे मजदूरों की आने वाले भविष्य के बारे में सोचकर वह कार्य करते थे। आने वाले भविष्य में मजदूरों को कोई समस्या ना हो।आज के वर्तमान युग में मजदूरों की कई संगठन दल्ली राजहरा में मजदूर हित की बात करने के लिए कार्यरत हैं। लेकिन वास्तविकता क्या है यह तो यह तह जाने में ही पता चलता हैं।
एक तरफ मजदूर संगठनों के नेता चौक चौराहों पर जाकर लोगों को लुभाने भाषण देते हैं और कहते हैं कि राजहरा में हमसे बड़ा हितैषी कोई नहीं है।आपकी चाहे कोई भी परेशानी हो आप चाहे किसी भी यूनियन के सदस्य हो हमारे पास आइये।हम आपकी समस्याओं का निराकरण करेंगे। हम आपके हक और अधिकार के लिए मैनेजमेंट और ठेकेदारों से लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं।लेकिन वास्तविकता तो तभी पता चलता है जब ये ठेकेदारों और प्रबंधकों से लड़ाई लड़ना तो दूर इन लोग उन्हीं के साथ मिलकर समझौता करके मजदूरों का दोहन करते हैं। जबकि मजदूर इन्हें अपना भगवान मानकर इनके द्वारा बताए गए कदम पर चलते है दल्ली राजहरा में कभी श्रमिक संगठन उजड़ते हुए राजहरा के बारे में ना सोचकर हमेशा अपने पार्टी और ” मजदूरों के साथ अपने स्वार्थ साधने में ही लग रहे यह कारण भी राजहरा को उजड़ने की दिशा मे बढ़ रहा है ।
नियोगी जी का जन्म 19 फरवरी 1943 को हुआ था। इनका बचपन का नाम धीरेंद्र था।उनकी शिक्षा जलपाईगुड़ी पश्चिम बंगाल में हुई।छात्र जीवन से नियोगी जी आक्रामक और संघर्षशील रहे। वे ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के स्थानीय इकाई के संयुक्त सचिव रहे।60 के दशक में दुर्ग जिले में भिलाई में एशिया का सबसे बड़ा स्टील प्लांट की नीव रखी जा चुकी थी।स्टील प्लांट के लिए दल्ली राजहरा के कई खदानों में लौह अयस्क की नई खदानें प्रारंभ हो गई थी। देश के कोने-कोने से काम करने के लिए कुशल कामगार छत्तीसगढ़ पहुंच रहे थे।
इसी 60 के दशक में धीरेंद्र भिलाई आ गए उन्हें प्लांट में काम कर रहे मामा जी के सहयोग से कोक वन में काम करने का अवसर मिला। कुछ ही समय में वे मजदूरों के हित में काम करते हुए काफी लोकप्रिय हो गए।उन्होंने मजदूरों को संगठित करना चालू कर दिया और मजदूरों को हक और अधिकार के लिए लड़ना सिखाया ।1967 में मजदूरों को एकजुट कर प्रबंधक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और हड़ताल की शुरुआत हुई।यह मजदूर की सरकारी उपक्रम में सबसे बड़ी हड़ताल थी। प्रबंधक को झुकना पड़ा और उनकी मांगे माननी पड़ी।दोबारा ऐसी स्थिति ना बने इसलिए प्रबंधक ने इन्हें नौकरी से निकाल दिया।लेकिन मजदूरों नियोगी जी के प्रेरणा पाकर आंदोलन को जारी रखा।
धीरेंद्र अब वहां से दानी टोला माइंस में काम करने पहुंचे।वहां 1973 – 74 में दहिया गांव में एक तालाब की खुदाई के दौरान शासन के भ्रष्ट अधिकारियों कि भ्रष्टाचार को गांव वाले के समक्ष उजागर किया करवाया और धरना देकर शासन से उन्हें मजदूरी दिलवाई।दानी टोला माइंस में 15 पैसे में उस समय एक कप चाय मिलता था। नियोगी जी ने 5 पैसे में दूध की एक कप चाय बेचकर ठेकेदार के मुनाफा खोरी को लोगों के समक्ष उजागर किया। उनकी निर्भरता और मजदूरों के समक्ष सच्चाई प्रकट करने की क्षमता ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया।
दल्ली राजहरा में उस समय मजदूरों की दो यूनियन थे जो मजदूरों से उनकी हक और अधिकार की लड़ाई के लिए चंदा तो लेते थे। लेकिन मजदूरों का फायदा करने के बजाय ठेकेदारों के फायदा करते थे।जिससे मजदूर लोग आक्रोशित हो गए और अपनी बातें धीरेंद्र के पास रखकर उन्हें दल्ली राजहरा आने का आमंत्रण दिया।
धीरेंद्र इसके बाद नए नाम शंकर गुहा नियोगी के नाम से दल्ली राजहरा पहुंचे। बीएसपी कर्मचारियों से अब वे श्रमिक नेता बन गए थे।दल्ली राजहरा में स्थित बीएसपी के खदानों में मजदूरों की दशा बहुत ही खराब थी ।उसे समय ठेकेदारों के द्वारा 14 से 15 घंटे उनसे काम लिया जाता था ।उसके एवज में उन्हें मात्र ₹2 की मजदूरी दी जाती थी। इन मजदूरों का कोई ट्रेड यूनियन नहीं था जो मजदूरों के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ें। तब नियोगी जी ने इनके बीच पहुंचे और उन्हें संगठित कर 1976 – 77 में नया संगठन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के बैनर तले मजदूरों के हक में काम करना चालू किया l 2 महीने में ही 10000 से ज्यादा मजदूर आंदोलन से जुड़ गए।परिणाम स्वरूप मजदूरों ने एक बड़ी हड़ताल कर दी। मजदूरों को य़ह लाभ जो पहले दो रुपया की मजदूरी मिलती थी वह 272 रुपए हो गई।
एक आंदोलन के दौरान 2 – 3 जून 1977 के मध्य रात्रि हुए गोली कांड में 11 मजदूर शहीद हो गए थे। आंदोलन का मुख्य वजह है कोई बहुत बड़ी नहीं थी मजदूर चाहते थे कि उन्हें ठेकेदार झुग्गी झोपड़ी मरम्मत के नाम पर राशि दें।इस पर ठेकेदार प्रबंधन और सरकार के बीच समझौता भी हुआ लेकिन ठेकेदार के समझौता से पलट जाने पर मजदूरों ने आंदोलन कर दी थी।
1990 से राजहरा के साथ अन्य निजी कंपनियां के मजदूर भी नियोगी जी के संगठन से जुड़ते गए। राजहरा से लेकर भिलाई तक मजदूरों के हक में वे सतत आवाज उठाते थे।उन्होंने पूंजीपतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।बड़े-बड़े उद्योगपतियों इनके ताकतों से घबराने लगे। लिहाजा नियोगी जी को धमकाने की भी कोशिश की गई।यहां तक की उन्हें जान से मारने के लिए कई बार कोशिश की गई। इन सबसे बेख़बर रहते थे। लेकिन 1991 की 27 सितंबर की वो काली रात जो मजदूर आंदोलन के इतिहास में धब्बा बनकर रह गया।नियोगी जी किसी काम से रायपुर गए थे। रात्रि में भी देर तक हुड्डको भिलाई स्थित अपने निवास पहुंचे। रात्रि करीब 3:45 को उद्योगपतियों के द्वारा भेजे गए पलटन मल्लाह ने सोते हुए नियोगी जी को गोली मार दी।नियोगी जी मां गो की आवाज के साथ हमेशा हमेशा के लिए शांत हो गए।नियोगी जी की हत्या की खबर सुनते ही पूरे मजदूर किसान स्तंध् रह गए। सब की आंखों में आंसू और इन उद्योगपतियों के खिलाफ आक्रोश था।
वह 28 सितंबर की सुबह शायद राजहरा कभी नहीं भूल पाएगा। जब नियोगी जी के पार्थिक शरीर को राजहरा लाया जा रहा था। रास्ते में इकट्ठे हुए हजारों आंखो में आंसुओं की धारा थी। लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। दल्ली राजहरा के छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ स्थित उनके कार्य स्थल में लाखों मजदूर और उनके परिवारों से भर गया था। नियोगी जी को श्रद्धांजलि देने वाले का भीड़ लग गया था। भीड़ का अनुमान इसी से लगा सकते हैं। जब नियोगी जी का अंतिम विदाई देने अंतिम यात्रा के लिए नगर भ्रमण किया जा रहा था। उनकी अंतिम यात्रा की लाइन 4 किलोमीटर से भी लंबी थी। लोग पैदल चल रहे थे नियोगी जी अमर रहे का नारा से पूरा दल्ली राजहरा गूंज रहा था।संघर्ष के लिए निर्माण और निर्माण के लिए संघर्ष नियोगी जी का नारा था।
खदान में काम करने वाले श्रमिक नेता कुसुम बाई की डिलीवरी केस में मृत्यु हो जाने से आहत मजदूरों ने नियोगी जी के नेतृत्व में अपना स्वयं का अस्पताल शहीद अस्पताल का निर्माण किया। जो आज बालोद जिला का सबसे बड़ा अस्पताल है। जहां पर बस्तर जिला मानपुर मोहला धमतरी एवं महाराष्ट्र के सीमावर्ती लोग गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं।अस्पताल में विभिन्न विभाग से संबंधित बच्चों को ट्रेनिंग भी दिया जाता है। अस्पताल को संवारने के लिए नियोगी जी के साथ काम करने वाले डॉक्टर शैवाल जाना का विशेष भूमिका रहा है।
आज दल्ली राजहरा में नियोगी जी का सपना को पूरा करने के लिए एक ओर जन मुक्ति मोर्चा के माध्यम से जन जन तक उनका संदेश पहुंच रहा है। तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा अपने पूर्व की भांति आज भी नियोगी जी की सपना को पूरा करने में उनकी टीम लगी हुई है।स्वर्गीय गणेश राम चौधरी जी, पूर्व विधायक जनक लाल ठाकुर जी , सोमनाथ उइके ,रामचरण नेताम ,राजाराम बरगद , शैलेश बम्बोडे ,मोहित ,नारद ,नासिक यादव ,जनक साहू ,नवाब जलानी ,प्रेमलाल वर्मा ,शेख अंसार , बसंत साहू , प्रेमलाल वर्मा ,यस के सिंह , भेख दास वैष्णव एवं बिसेलाल निषाद जो की नियोगी जी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर सहयोग करते थे उनका सपना पूरा करने के लिए आज भी संघर्षरत है।
अंत में नियोगी जी जैसे महामानव को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हीं के लिए लिखे गए एक लेख ....
वह जिंदा है जनता के बीच
जनता जन्म देती है शहीदों को
ओ हत्यारा तुम जान ले सकते हो !
विप्लवियो की लेकिन क्या तुम मार सकते हो
विचारों को ……. !
संकलन
रवि सेन दुर्ग,
छत्तीसगढ़
9630670484