कथा में जीवंत हुआ समुद्र मंथन — शिव बने नीलकंठ, विष्णु को मिली लक्ष्मी, संत निरंजन महाराज कहा—मंथन केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है !


रविआनंद  9630670484

नंदकट्ठी ! हमर मितान - अहिवारा विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत ग्राम बोड़ेगांव में सिन्हा परिवार के तत्वावधान में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन 08 से 16 सितम्बर तक किया जा रहा है । आपको बता दे कथा का आयोजन स्व. भवानी सिन्हा , अमृत बाई और जानकी बाई सिन्हा की स्मृति में किया जा रहा है। कथावाचक संत निरंजन महाराज जी हैं। कथा ग्राम बोड़ेगांव के बाज़ार चौक पर कथा समय दोपहर 1.00 बजे से।

ग्राम बोड़ेगांव में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन संत श्री निरंजन महाराज ने भक्तों को समुद्र मंथन का विस्तृत प्रसंग सुनाया। कथा के दौरान उन्होंने बताया कि जब राजा परीक्षित ने समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों के महत्व के विषय में प्रश्न किया, तब शुकदेव जी महाराज ने इसका विस्तार से वर्णन किया।

संत महाराज ने कहा कि समुद्र मंथन में मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया। राक्षसों ने नाग का मुख और देवताओं ने उसकी पूंछ पकड़ी। जब मंदराचल समुद्र में डूबने लगा, तब भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार धारण कर पर्वत को अपनी पीठ पर संभाला।

मंथन से सबसे पहले हलाहल विष प्रकट हुआ, जिसे भगवान शिव ने पीकर अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए। इसके बाद क्रमशः चौदह रत्न प्रकट हुए—कामधेनु गाय ऋषियों को प्राप्त हुई, उच्चैःश्रवा अश्व असुरराज बलि को मिला, ऐरावत हाथी इंद्र को प्राप्त हुआ, कौस्तुभ मणि भगवान विष्णु ने धारण की, कल्पवृक्ष इंद्रलोक को मिला, अप्सराएँ (रंभा, उर्वशी आदि) स्वर्गलोक में पहुँचीं, वारुणी देवी वरुण देव को प्राप्त हुईं, चंद्रमा भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण किया, पारिजात पुष्प इंद्रलोक को मिला, शंख भगवान विष्णु को प्राप्त हुआ, धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए, लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को वरण किया और अंत में अमृत कलश देवताओं को मिला।

संत निरंजन महाराज ने भक्तों को समझाया कि समुद्र मंथन केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन में धैर्य, सहयोग और तपस्या की शक्ति का प्रतीक है। कथा स्थल पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और कथा का श्रवण कर आध्यात्मिक आनंद प्राप्त किया।

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