रविआनंद 9630670484
नंदकठ्ठी!हमर मितान- अक्षय तृतीया का पर्व शनिवार को मनाया गया। सुबह मंदिरों में दान पुण्य किया गया। इसके बाद बच्चों एवं राम जानकी मंदिर ग्रुप की महिलाओं ने पारंपरिक तरीके मंडप सजाया, वहां हल्दी खेली और पुतरा यानी गुड्डे की बारात निकालकर मंडप में पुतरी यानी गुड्डी से उसका ब्याह रचाया। छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुरूप बच्चों के लिए यह पर्व बेहद खास होता है। बच्चों ने एक-दूसरे को हल्दी लगाई और जमकर नाचे भी। दिनभर शादी की रस्मों के साथ रात में टीकावन भी किया गया। जगह-जगह पर बच्चों ने शादी का आयोजन कर माता-पिता और अन्य लोगों को आमंत्रित किया
अक्षय तृतीया को अक्ती पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व पर बाल विवाह की परंपरा है। आजकल लोग जागरूक हो गए हैं, इसलिए बाल विवाह की परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है, लेकिन अक्ती पर पुतरा-पुतरी विवाह की परंपरा अब भी चली आ रही है। ग्राम नंदकठ्ठी के वार्ड-14 व 15 श्री राम जानकी मंदिर में बाजे बज रहे थे। बच्चों के साथ महिलाएं बारात के स्वागत की तैयारी में लगी हुई थीं। पड़ोस के एक घर में जायकेदार पकवान बन रहे थे। पास-पड़ोस के बच्चे और महिलाएं काम में हाथ बंटा रही थीं। दोपहर को घरातियों को एक संदेशा आया कि बारात बाजार चौक से निकल चुकी है और कुछ देर में घर तक पहुंच जाएगी। इस संदेशा के बाद घराती बारातियों के स्वागत में एकदम से जुट गए। कुछ ही देर में द्वार पर एक अनोखी बारात पहुंची, जिसमें दुल्हा बच्चा था और वह लकड़ी के घोड़े पर सवार था। घरातियों ने बारातियों को पारंपरिक रूप से परघाया। उसके बाद दुल्हा और दुल्हन को मड़वा के नीचे लाया गया। यहां शादी कराने वाला कोई पुरोहित नहीं था, बल्कि महिलाओं ने पारंपरिक विवाह गीत गाकर फेरे लगवाए। फेरे के बाद टिकावन हुआ, जिसमें लोगों ने दुल्हा-दुल्हन को विभिन्न तरह के उपहार दिए। विवाह के बाद घराती और बाराती सभी मिलकर पंगत में बैठ गए और भोजन किया। यह कोई वास्तविक विवाह नहीं था, बल्कि अक्षय तृतीया पर हुए बच्चों का विवाह था, लेकिन किसी वास्तविक विवाह समारोह से कम भी नहीं था। इस विवाह में वर पक्ष की ओर से प्रमोद निषाद, श्रीमती वर्षा निषाद, बिरेंद्र यादव, श्रीमती रश्मि यादव, त्रिलोचन कुंभकार, श्रीमती सुनीता कुंभकार एवम् वधु पक्ष की ओर से खोमलाल धनकर, श्रीमती ओमनीन धनकर, रमेश साहू, श्रीमती बिन्दु साहू। स्वागतोत्सव- राजू निषाद (पंच), अनिल यादव (उपसरपंच), महेंद्र साहू (कैमरामैन), आनंदराम साहू (पत्रकार नवभारत), श्रीमती सुनीता निषाद, उमा, खुशबू, केशरी अन्तु, हिना, सुनिया, लोकेश्वरी, भूमिका,एकता, मोनिका, नूतन, चंदा मोसमी पायसी जिन्नी दिना भावना, रागिनी, जिग्गु, उर्वशी, तेजश्वनी स्वागतकांक्षी- इशिका, लाडो, तोषि, वीरां, चेष्टा, देविका, सुहानी, जिया, लिलि मानसी नाही, रम्या, लिलिमा केसिका, दिव्याशी धनश्वी दर्शनाभिलाषी राधा-कृष्ण, लक्ष्मीनारायण एवं समस्त देवी देवता- बाल गोपाल ग्रुप- छोटु मोला, मटरू, लक्छु अभि, साहिल, रूद, प्रतिक, मंकु, मोक्ष, लक्की, लव, बबलु, दिप, रमेश-बिन्दू, प्रमोद-वर्षा, प्रमुख रूप से शामिल हुईं। अक्षय तृतीया इस तरह का विवाह गोंड पारा में भी हुआ।![]() |
हिंदू परंपरा के अनुसार अधिकांश लोगों ने सुबह स्नान और दान के साथ पितरों को जल चढ़ाया। उनसे आशीर्वाद मांगकर अक्षय समृद्धि की परंपरा को बनाए रखने कामना की।
इस दिन किसान अपने खेतों में नए बीज की बुवाई करते हैं।
किसानों ने परिवार सहित खेतों पर जाकर नई बीज बुवाई की शुरुआत की ।मिट्टी की पूजा कर कामना की कि आने वाले दिनों में उन्हें बेहतर उत्पादन से समृद्ध बनाएं। अधिकांश परिवारों ने अक्षय तृतीया को देव मुहूर्त मानते हुए घर में गृह लक्ष्मी यानी बहू का प्रवेश कराया।
मंदिरों में पूजन, शुभ मुहूर्त में खरीदारी भी
अक्षय तृतीया को शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए बेहद खास माना जाता है। इस मौके पर की गई खरीदारी खास होती है। ऐसे में शहर के बाजार खरीदारों से गुलजार रहे। वहीं मंदिरों में भी पूजा-अर्चना का दौर चलता रहा। लोगों ने अपने प्रतिष्ठानों में पूजा अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की।
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